वैदिक ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव पड़ता है। कुंडली में मंगल दोष होने पर तमाम तरह की परेशानियां आने लगती है, जिसमें प्रमुख रूप से विवाह में देरी का होना माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं। जिन लोगों की कुंडली में मंगल शुभ भाव में होते हैं वह व्यक्ति काफी निडर और साहसी स्वभाव होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार की चुनौती से जल्दी घबराता नहीं है। वहीं जिन जातकों की कुंडली में मंगल अशुभ भाव में विराजमान होते हैं उन्हें कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती है।
देरी से विवाह, दांपत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्यादि के समय मंगल यंत्र पूजन का विधान है। भात पूजा के समय भी यह कार्य किया जा सकता है। इससे दाम्पत्य जीवन में सुख की प्राप्ति होती है और संतान सुख मिलता है। वर, कन्या दोनों की कुंडली ही मांगलिक हो तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है
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